
लखनऊ का वो हिस्सा, जो न टूरिज़्म ब्रोशर में दिखता है और न कभी बजट में आता है। जहां हर गली इतनी तंग है कि आपके ‘बुलेटप्रूफ विकास’ को रिक्शे से उतरकर चलना पड़ेगा। यहां पाइपलाइन नहीं, पाइप फूटी हुई है। सड़कें नहीं, अधूरी घोषणाएं बिछी हैं।
एक बार आईए, जो मलिन बस्ती का मापदंड है, वो हर चौराहे पर पका-पकाया मिलेगा।
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यहाँ नाली ऊपर, पीने का पानी नीचे बहता है
स्वच्छ भारत मिशन की किताबें यहां किसी ‘फैंटेसी नॉवेल’ से कम नहीं लगतीं। सप्लाई का पानी और गटर का बहाव जब मिल जाए, तो उसे क्या कहते हैं?
यहां लोग नहीं, सिस्टम की चूकें सांस ले रही हैं।
‘स्मार्ट सिटी’ के पोस्टर लगे हैं, लेकिन WiFi से पहले WiFly (मच्छर) काट जाता है
स्मार्ट सिटी बोर्ड यहां हर गली में टँगा है, जैसे किसी मज़ाक की तरह। WiFi? अरे साब, यहां चार्जिंग पॉइंट की जगह लोग चप्पल चार्ज कर देते हैं।
मोहल्ला क्लीनिक नहीं, मोहल्ला ‘क्लेरिकल भूल’ का नमूना है
स्वास्थ्य उपकेंद्र की हालत ऐसी है कि डॉक्टर के आने से पहले वहां झाड़ू लगाने वाला छुट्टी ले चुका होता है। टीकाकरण अभियान सिर्फ फोटोशूट में हुआ, ज़मीन पर टीका नहीं, ठेंगा मिला।
विकास की ऐसी लपट है कि रोटियाँ खुद-ब-खुद जल जाएं
यहां राशन कार्ड के लिए 8 चक्कर लगाइए, फिर भी खाली पेट रहिए। गली के आख़िरी घर में मोबाइल टॉवर नहीं, मछली तलने की महक मिलती है।
‘बुलडोजर मॉडल’ से पहले आइए ‘पैदल मॉडल’ पर उतरिए
योगी जी, विकास के ब्लूप्रिंट से पहले एक बार इन गलियों में पैदल आइए। जहां आपकी हर घोषणा दीवारों पर पोती गई पेंटिंग से ज्यादा नहीं दिखती। यहां ‘मलिन’ सिर्फ बस्ती नहीं, सोच भी घोषित हो चुकी है।
न समीक्षा बैठक, न कोई दौरा — यहां तो हालात खुद चिल्ला रहे हैं
जमीनी सच्चाई यह है कि यहां के लोग सरकारी योजनाओं में अपडेट नहीं, भूतपूर्व हो चुके हैं। न शिक्षा, न स्वास्थ्य, न रोजगार — ये वो लोग हैं जिनके नाम सरकारी प्रेस रिलीज़ में नहीं आते।
योगी जी, एक दिन निकालिए — हालात समझने को लेकिन बिना बताये आइयेगा
यह सड़कों पर चलने वाले वो लोग हैं, जो रैलियों में कुर्सियां भरते हैं, लेकिन फॉर्म भरते रह जाते हैं। आपका बुलडोजर इन गलियों में नहीं चला, लेकिन आशाओं का मलबा यहीं पड़ा है।
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